हरतालिका तीज

आया तीज का त्यौहार,
मन हर्षित हुआ अपार।
छाई रहे हर तरफ,
खुशियों की बहार।
गौरी शंकर की कृपा रहे
हम देते हैं आभार।
सबका सुहाग बना रहे,
और जीवन हो खुशहाल।।

मेरे प्यारे पाठक,
इस लेख द्वारा आप सभी के साथ हरतालिक तीज के अपने अनुभवों को साझा करना चाहती हूं।
यूं तो हमारी संस्कृति में अनेक व्रत त्योहार शामिल हैं पर सुहागनों के लिए सबसे विशेष महत्व रखता है तीज का त्यौहार। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि और हस्त नक्षत्र में हरतालिका तीज का व्रत मनाया जाता है। सावन की रिमझिम फुहारों से धरती पर चारो तरफ पहले से ही हरियाली छाई रहती है और सावन विदा होते होते अपनी सुन्दरता भादो मास को सौंप देता है। सौन्दर्य और सुगंध से सराबोर प्रकृति का नवीन रूप देखते ही बनता है और ऐसे वातावरण में जब हमारे तीज त्योहार मनाए जाए तो उत्साह चौगुना हो जाता है।

 हरतालिका तीज का ऐतिहासिक महत्त्व 
इस व्रत का सीधा संबंध माता पार्वती से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए तपस्या की थी तो शिव जी प्रसन्न होकर उनसे विवाह करने को तैयार हो गए। तब से कहा जाता है की जो भी स्त्री अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखेंगी उनपर शिव पार्वती की विशेष कृपा हमेशा बनी रहेगी। ये व्रत सिर्फ सुहागने अपने पति के लिए नही बल्कि अविवाहित कन्याएं भी मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए रखती हैं।

व्रत और पूजन विधि
भारतीय संस्कृति में सात वार और नौ त्योहार का विशेष स्थान है। हमारी परंपराएं इस रंग रंगीली संस्कृति की जान है। अलग अलग प्रांतों में कई बार पूजन विधि में थोड़ी बहुत विविधताएं भी पाई जाती हैं। 
 इस दिन महिलाएं पूरा दिन निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। व्रत के एक दिन पहले सभी व्रति सादा भोजन करती हैं जो की बिना प्याज और लहसुन का होता है । औरतें इस दिन नहा धोकर अपने हाथों और पांव के नाखून काटती हैं फिर इनपर नेल पॉलिश और आलता लगाती हैं। व्रत के पहले यह शुद्धिकरण की विधि मानी जाती है।

इस दिन महिलाएं पूजन के प्रशाद के लिए गुजिया बनाती हैं। यह एक प्रकार की मिठाई है जो मैदे की पूरी बनाकर उसके अंदर मावा और रवा का मीठा मिश्रण भरकर तैयार किया जाता है। इसे एक विशेष आकृति दी जाती है जो देखने में बहुत खूबसूरत लगती है।


पूजन के स्थान को साफ सुथरा कर एक चौकी लगाई जाती है। इस पर शुद्ध मिट्टी से गौरी शंकर की छोटी प्रतिमा बनाई जाती है। 
श्रृंगार का समान जैसे वस्त्र, चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी इत्यादि भगवान को अर्पित कर दान किया जाता है। हरतालिका तीज में भोग चढ़ाने का एक विशेष तरीका होता है। प्रशाद और फलों को बांस की बनी  रंगीन टोकरियों में सजाया जाता है जिन्हे डलिया कहते हैं।
आजकल के समय में कई शहरों में डलिया मिलना मुश्किल हो जाता है तो इसे किसी भी शुद्ध बर्तन में किया जा सकता है। इसमें पान के पत्ते , सुपारी, अक्षत, गुजिया, पूरी और ५ किस्म के फल रखे जाते हैं जैसे: सेब, केला, अमरुद, नाशपाती, खीरा, नारंगी, मक्के की बाली ईत्यादि। मिट्टी की एक छोटी कटोरी में दही भी रखी जाती है।
बड़े ही विधि विधान से हरतालिका तीज की कथा सुनी जाती है और आरती के साथ पूजा संपन्न होती है। कई लोग पूजा अर्चना के बाद शिव पार्वती जी के भजन भी गाते हैं। अगले दिन सूर्योदय के पहले नहा धोकर पूजा की जाती है और विधि विधान से मूर्तियों को विसर्जन करके ही जल ग्रहण किया जाता है।

तीज और श्रृंगार
सुहागनों को हमेशा ही इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है क्योंकि साल में एक बार उन्हें खूब सजने संवरने का मौका मिलता हैै ।


मेंहदी की लाली पति के प्रेम का प्रतीक होती है। तीज के मौके पे सभी सुहागने मेंहदी लगाती हैं जो उनके श्रृंगार को चार चांद लगा देता है।

लाल आलता , चांदी की पायल और बिछुए सुहागनों के पैरों की सुंदरता बढ़ा देती है।

साड़ी में नारी खूबसूरत लगती है,पर
नारी पे साड़ी उससे भी ज्यादा खूबसूरत लगती है।।

औरतें चाहे कितने भी श्रृंगार कर लें लेकिन उनकी असली खूबसूरती का राज उनकी साड़ी में छिपा होता है। तीज का श्रृंगार भी खूबसूरत रेशमी साड़ियों से खिल उठता है। तीज के मौके का हर औरत की तरह मुझे भी इंतजार होता है ताकि बाजार में उपलब्ध नईं डिजाइन और पैटर्न को अपनी कलेक्शन में शामिल कर सकूं। जामुनी रंग की ये साड़ी चंदेरी सिल्क के ऊपर जड़ी का काम किए हुए है। पारंपरिक रंगो से थोड़ा अलग हटकर ये रंग भी आप जरूर पहनें और अपने लुक को कुछ अलग रूप दें।  


हरतालिका तीज का पावन व्रत हम महिलाओं की सहनशीलता की कठोर परीक्षा होती है। पूरा दिन बिना अन्न और जल ग्रहण किए हुए हम ये दर्शाते हैं कि हमें हमारी इन्द्रियों पर कितना नियंत्रण है। आधुनिक समय में इसके मायने भी बदलते जा रहे हैं । कुछ लोग अपनी सुविधाओं के अनुरूप नियमों में परिवर्तन भी कर देते हैं। 
मेरे अनुसार व्रत त्योहार को आस्था से जोड़कर मनाया जाए तभी उसका फल भी प्राप्त होता है।  
मैं बिहार की रहने वाली हूं और मैंने मेरे बड़ों को जिस विधि से पूजा करते देखा है आज मैं भी उन्ही के रास्तों पर चल रही हूं।
आप सभी से भी मेरी गुजारिश है कि आप भी अपने प्रांत के नियमों और  परिवार के बड़े सदस्यों की चलाई हुई परंपराओं को आगे बढ़ाए। 

 मैंने आप सभी के साथ मेरे अनुभवों को बांटने की एक नई पहल की है। उम्मीद है आप सभी को पसंद आया होगा। अगर आप अपने अनुभवों को मुझे बताना चाहते हैं तो मुझे ईमेल कर सकते हैं 
Amiable_as@ yahoo.com
इंस्टाग्राम पर फॉलो करें @ amiable_as  


Comments

Popular posts from this blog

Dot com friends or friends IRL( in real life)?? It's a matter of trust in this digital age!!

Supporting kids in pandemic through Positive "PARENTING"....

Adorn yourself this🌺🙏 Durga Puja 🙏 🌺 with the Majestic Madhubani art 🎨🖌️